पंडित जसराज जी को श्रद्धांजली

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…बस आज पंडित जी से हुई अपनी पहली और अंतिम बातचीत कानों में गूँज रही है..

बीईंग माइंडफुल अप्रैल2017 में प्रकाशित अमूल्य साक्षात्कार!!

वो अद्भुत आनंद…….
पं. जसराज जी
वे घटनाएँ……..
प्रसन्नता अपने आप में हो सकती है। खुशी कोई दे सकता है और घटनाओं पर निर्भर करता है…..। एक घटना मुझे याद आती है, जो मुझे खुशी से भर देती है। बड़े प्रोड्यूसर हैं उनका नाम है….. इस्माइल मर्चेंट। उन्होंने मेरा कार्यक्रम रखा और मुझको, मैं जहाँ ठहरा था 60 मील दूर…..लेने टेक्सी भेज दी, तो हमारे किसी एक शिष्य के साथ, हम गाड़ी में बैठ गए। अब, जब एक मकान पर ले गया तो वहाँ पर पता चला कि इस्माइल साहब नहीं हैं फिर दूसरे मकान में ले गया, वहाँ भी नहीं थे। तीसरे मकान के आगे उसने जब गाड़ी रोकी, तो उसने कहा, मैं देख कर आता हूँ कि हैं कि नहीं।’’ तो मैं भी उतरकर धीरे-धीरे जाने लगा…… और देखा कि ड्राइवर तो जल्दी वापस लौट कर आ रहा है और देखा कि पीछे से किसी के दौड़ने की आवाज़ आ रही है।…… तो मैं रूक गया अचानक पीछे रूककर देखने के लिए…… मैंने मुड़कर देखा कि इस्माइल साहब नेकर और बनियान पहने, भाग के आ रहे है। उन्होंने कहा, पं. जी मैं एक्सरसाइज़ कर रहा था, इस स्थिति में मैं आपसे मिलना नहीं चाह रहा था लेकिन देखा कि आप भी लौट कर जा रहे हैं तो बहुत बुरा लगा…….। मैंने सोचा कि कोई बात नहीं, ऐसे ही चलते हैं।
…………तो आप यकीन मानिए कि इस बात ने हमें बड़ी खुशी दे दी। हालाँकि……. कोई आदमी शायद बुरा भी मान जाए कि इस तरह से मुझसे आप कैसे मिलने आ गए। इस बात से मैं बहुत खुश हो गया। वो कितने बड़े आदमी हैं और कार्यक्रम भी बहुत अच्छा हो गया…….. इसकी वजह से अच्छा हुआ। इस हरकत से उन्होंने मुझे खुशी दे दी।
दूसरा मेरी ग्रेट ग्रांड डाॅटर के आने से मुझे जो आनंद और खुशी मिली। यह एक दूसरे तरह की खुशी है।…….

संगीत-साधना और आनंद की अनुभूति:-
जब आप कार्यक्रम में गा रहे हैं आपने देखा कि महफिल में लोग प्रसन्न हो रहे है। वो स्थायी होता है…… लंबा आनंद देता है…….. ऐसे में आपसे कोई कुछ पूछे तो, कुछ कहा भी नहीं जाता……। बस ऐसा आनंद जो अगली सुबह तक भी वैसा ही ताजा़ स्मृति में बना रहता है। आप उसको भूल नहीं पाते।

जहाँ तक संगीत के स्वर…… पता नहीं किस भूमि से वे स्वर निकलते हैं….. नाभि से स्वर निकलते हैं…… और शरीर……जिसे गात्र-वीणा कहते हैं। गात्र माने शरीर…… और वीणा तो आप जानते ही हैं। गात्र वीणा में नाभि से हम गाते हैं। एक मैंने ये अनुभव किया है। कभी-कभी कण्ठ और मस्तिष्क से भी स्वर निकलते हैं, एक बार मैंने ये अनुभव किया है। जब एक बार मैं बद्रिकाश्रम में 1988 में एक कार्यक्रम में गा रहा था, तो मैं ऊपर वाले ’सा’ पर ही खड़ा रह गया। तारसप्तक के ’सा’ पर…….और मैं भूल गया कि मैं कितनी देर से खड़ा हूँ……! और मैं खड़ा ही हूँ! और साँस पेट से तो नहीं….. ये जो कटपटियाँ हैं वहाँ से साँस की प्रक्रिया चल रही है और वो साँस जो है ऊपर मस्तिष्क में जाकर चक्कर मारकर वापिस आ जा रहा था। दो बार चला गया…… तीसरी बार जब गया तो मुझे अचानक ये लगा कि ’’अरे! अपने आप ही सवाल जवाब हो गया……. अरे! ये तो समाधि है! बस….. वहीं खत्म हो गया…..! वो एक अज़ब चीज़ थी उसको आनंद कहो या क्या कहो……। मैंने अपनी पत्नी को बताया। उन्होंने बताया कि ये तो समाधि का अनुभव है।…… वो अद्भुत आनंद था…..।
जब मैं रियाज़ पर बैठता हूँ तो आनंद लगातार आते ही रहता है। यदि कोई स्वर अचानक, एकदम से… लग गया… जिसे हम ढूँढ़ते रहते हैं तो उसके आनंद की तो सीमा ही नहीं रहती है।

रुपया सिर्फ एक अनुभूति है….. और कुछ नहीं……। एहसास है…… और उसकी कोई अनुभूति नहीं। रुपया दुःख का कारण है। यदि है….. तो दुःख है……… और नहीं है…… तो दुःख है। और आदमी कभी संतुष्ट नहीं होता….. और, और चाहिए….।

संगीत और आध्यात्म जुड़ा है। आध्यात्म का मतलब भगवान को याद कर लिया वहीं काम संगीत करता है।

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